
केन्द्र की सॉइल हेल्थ कार्ड स्कीम बंद, बिसरा दिया मृदा दिवस
वित्तीय मदद नहीं मिलने से लैब बेकार हो रहे,
बिलासपुर- 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस दुनिया भर में मनाया गया। लेकिन छत्तीसगढ़ में मृदा दिवस को बिसरा दिया गया है। हालांकि इस बारे में पता करने पर कृषि विज्ञान केन्द्र व महाविद्यालयों में मृदा दिवस की की औपचारिकता पूरी की गई। लेकिन विभागीय स्तर पर पिछले कुछ सालों से मृदा दिवस मनाना तो दूर विमर्श भी बंद कर दिया गया है। इस मामले केन्द्र सरकार कम जिम्मेदार नहीं है। जिस स्वाइल हेल्थ कार्ड स्कीम की शुरुआत हुई थी वह अब बंद हो चुकी है। प्रत्येक जिलों में मिट्टी परीक्षण के लैब अलग-अलग स्थानों पर खुले थे, वे बंद पड़े हैं और धूल खा रहे हैं। इस संबंध में अधिकारियों से पूछे जाने पर कहा कि, शासन स्तर से पिछले कुछ सालों से दिशा-निर्देश नहीं आने के कारण मृदा दिवस पर अब कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं।
सॉइल हेल्थ कार्ड योजना की शुरुआत 2015 में केन्द्र सरकार द्वारा किया गया था। योजना का उद्देश्य मिट्टी के पोषक तत्वों के क्षरण को रोकने के लिए हर तीन साल में किसानों को मिट्टी की प्रकृति जानने का अभियान चलाया गया था। इसके लिए लैब का निर्माण और किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करने अभियान चलाया गया था। मिट्टी परीक्षण निःशुल्क प्रदान किया गया था। लेकिन कोरोना महामारी आने के बाद से मृदा परीक्षण ढप पड़ चुका है। अब पिछले दो वर्षों से जब कोरोना महामारी से संबंधित तमाम बाध्यता खत्म हो चुकी है इसके बावजूद न केवल मृदा परीक्षण कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा रहा है। बल्कि मिट्टी परीक्षण के लिए जो अधोसंरचना तैयार किया गया था वह भी बेकार हो रहा है। हर साल केन्द्र द्वारा वित्तीय मदद नहीं मिलने के कारण मृदा से संबंधित कार्य प्रभावित हो रहा है।
इस संबंध में अलग-अलग जिलों के विभागीय अधिकारियों से बात की गई। तो ज्यादा विस्तार से बताने में हिचक साफ पता चल रहा था। जांजगीर चांपा जिले के सहायक संचालक कृषि ( मिट्टी परीक्षण से संबंधित प्रभारी अधिकारी) एम के मरकाम ने बताया कि, पिछले साल की तरह इस बार भी मृदा दिवस पर कोई निर्देश या फण्ड नहीं आने के कारण इस बार भी कार्यक्रम नहीं हुआ। इधर कृषि कालेज बिलासपुर में मृदा दिवस पर औपचारिक रूप से कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिसका फोटो मृदा वैज्ञानिक पीके केसरी ने हमें उपलब्ध कराया।
सॉइल टेस्ट के लिए अगर फिर से काम शुरू करने के लिए अब प्रदेश भर के लैब को फिर से शुरु करना पड़ेगा। जिसके लिए वित्तीय भार आएगा। केन्द्र से वित्तीय मदद नहीं मिलने के कारण केंद्र की इस योजना का अल्प काल में ही बुरा हाल हो गया है। जिस तरह से केन्द्र ने किसानों हित के जो दावे किए थे वह खोखले साबित हो रहे हैं। खासकर के राज्य के उन जिलों में जहां पर धान की पैदावार साल में दो बार किया जाता है वहां पर मिट्टी की प्रकृति व संरचना में काफी परिवर्तन हो रहा है। कीटनाशकों व उर्वरक के छिड़काव से मिट्टी के स्वास्थ्य में असंतुलन पैदा हो गया है।