*गीता के सार से ही समाज व राष्ट्र का कल्याण संभव,रौनियार समाज के बैठक में श्रीमद भागवत गीता पुराण का किया गया वितरण……………..* Munadi

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कांसाबेल।बुधवार को यहां के बगिया में रौनीयार समाज गडला इकाई के पदाधिकारियों की अहम बैठक आयोजित हुई।बैठक में समाज के उत्थान के लिए कई अहम फैसले लिए गए।बैठक में मुख्य रूप से रौनियार जाति को केंद्रीय पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल कराने पहल करने को लेकर विशेष रूप चर्चा हुई।साथ ही समाज में बढ़ते नशापान के रोकथाम के लिए कई अहम निर्णय लिया गया।इस मौके पर बड़ी संख्या में रौनियार समाज के लोग उपस्थित रहे।ईकाई अध्यक्ष श्री प्रमोद गुप्ता ने ईकाई के सभी सदस्यों को श्रीमद भगवद गीता एवं गीता दैनंदिनी 2023 वितरित करते हुये क़हा कि श्रीमद भगवतगीता के दिव्य ज्ञान को बहुत ही तर्कसंगत और सरलता से समझें, इसमें हमारी सभी समस्याओं का समाधान है और आपके सभी प्रश्नों के उत्तर भी है, कृपया सभी सनातनी को गीता अवश्य पड़नी चाहिये।उन्होंने बताया की गीता में जीवन का सार है,जिसे पढ़कर कलयुग में मनुष्य जाति को सही राह मिलती हैं,हिन्दू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ भगवत गीता का हिन्दू समाज में सबसे उपर स्थान माना जाता हैं, इसे सबसे पवित्र ग्रन्थ माना जाता हैं।भगवत गीता स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी।कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन अपने सगो को दुश्मन के रूप में सामने देख,विचलित हो जाता हैं और उसने शस्त्र उठाने से इंकार कर देता हैं। तब स्वयं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को मनुष्य धर्म एवम कर्म का उपदेश दिया. यही उपदेश भगवत गीता में लिखा हुआ है, जिसमे मनुष्य जाति के सभी धर्मो एवम कर्मो का समावेश हैं।उन्होंने बताया की कुरुक्षेत्र का मैदान गीता की उत्पत्ति का स्थान है, कहा जाता है कलयुग में प्रारंभ के महज 30 वर्षों के पहले ही गीता का जन्म हुआ, जिसे जन्म स्वयम श्री कृष्ण ने नंदी घोष रथ के सारथि के रूप में दिया था।गीता का जन्म आज से लगभग 5140 वर्ष पूर्व हुआ था।गीता केवल हिन्दू सभ्यता को मार्गदर्शन नहीं देती, यह जाति वाद से कही उपर मानवता का ज्ञान देती हैं।गीता के अठारह अध्यायो में मनुष्य के सभी धर्म एवम कर्म का ब्यौरा हैं।इसमें सत युग से कल युग तक मनुष्य के कर्म एवम धर्म का ज्ञान हैं, गीता के श्लोको में मनुष्य जाति का आधार छिपा हैं। मनुष्य के लिए क्या कर्म हैं उसका क्या धर्म हैं, इसका विस्तार स्वयं कृष्ण ने अपने मुख से कुरुक्षेत्र की उस धरती पर किया था. उसी ज्ञान को गीता के पन्नो में लिखा गया हैं. यह सबसे पवित्र और मानव जाति का उद्धार करने वाला ग्रन्थ हैं।महाभारत काल, कुरुक्षेत्र का वह भयावह युद्ध, जिसमे भाई ही भाई के सामने शस्त्र लिए खड़ा था।वह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए था।उस युद्ध के दौरान अर्जुन ने जब अपने ही दादा, भाई एवम गुरुओं को सामने दुश्मन के रूप में देखा तो उसका गांडीव (अर्जुन का धनुष) हाथो से छुटने लगा, उसके पैर काँपने लगे,उसने युद्ध करने में अपने आप को असमर्थ पाया,तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया. इस प्रकार गीता का जन्म हुआ,श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म की सही परिभाषा समझाई,उसे निभाने की ताकत दी।एक मनुष्य रूप में अर्जुन के मन में उठने वाले सभी प्रश्नों का उत्तर श्री कृष्ण ने स्वयम उसे दिया,उसी का विस्तार भगवत गीता में समाहित है, जो आज मनुष्य जाति को उसका कर्तव्य एवम अधिकार का बोध कराता हैं।गीता का जन्म मनुष्य को धर्म का सही अर्थ समझाने की दृष्टि से किया गया।जब गीता का वाचन स्वयम प्रभु ने किये उस वक्त कलयुग का प्रारंभ हो चूका था, कलयुग ऐसा दौर हैं जिसमे गुरु एवम ईश्वर स्वयम धरती पर मौजूद नहीं हैं, जो भटकते अर्जुन को सही राह दिखा पायें, ऐसे में गीता के उपदेश मनुष्य जाति को राह प्रशस्त करते हैं। इसी कारण महाभारत काल में गीता की उत्त्पत्ति की गई।हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म हैं जिसमे किसी ग्रन्थ की जयंती मनाई जाती हैं, इसका उद्देश्य मनुष्य में गीता के महत्व को जगाये रखना हैं. कलयुग में गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ हैं जो मनुष्य को सही गलत का बोध करा सकता हैं।


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