
रायपुर-दुर्ग के बीच चलती कार में आईपीएल मैच की एक-एक गेंद और बल्लेबाजों के रन पर दांव लेने वाले हाईटेक सट्टे का चार दिन में दूसरा गिरोह फूटा है। इस गैंग ने भी अपनी कार के शीशों पर ब्लैक फिल्म चढ़ाकर इसे सट्टे का चलता-फिरता अड्डा बना लिया था। कम्युनिकेटर की मदद से एक खाईवाल एक साथ 17 सटोरियों से बात कर उनका दांव ले रहे थे। साइबर सेल की टीम ने आरोपियों को पकड़ा और पूछताछ के बाद खाइवालों को लाइन देने वाले दो बुकी को भी घरों में छापे मारकर दबोच लिया। दोनों छोटे बुकी हैं जो मुंबई से लाइन लेकर खाइवालों को दे रहे थे।
पुलिस अफसरों के अनुसार अश्वनी माखीजा और उमेश राजवानी ने मुंबई से पैसे में लाइन ली थी और फिर इसमें नवीन चावला, अविनाश दौलतानी, विजय परप्यानी, निखिल गोविंदानी को भी कनेक्ट किया। चारों लोकल खाईवाल हैं। पुलिस को झांसा देने के लिए सटोरियों ने अपनी कार को सट्टे का अड्डा बनाया और इसी में कम्युनिकेटर मशीन भी लगा ली। इसकी मदद से आरोपी एक साथ 17 सटोरियों का दांव ले रहे थे। रायपुर में चूंकि कार में सट्टा खिलाने पकड़े जा चुके हैं, इसलिए उन्होंने रायपुर-दुर्ग की सड़क को चुना और वहां आते जाते दांव ले रहे थे। साइबर सेल को अविनाश पर पहले ही शक था।
पुलिस ने उसका लोकेशन पता लगाया। एक ही रोड का लोकेशन मिलने पर शक हुआ और उसे घेरकर पकड़ा गया। एसएसपी अजय यादव ने बताया कि पुलिस की लगातार छापेमारी से बचने के लिए खाईवाल कार में घूम घूमकर सट्टा खिला रहे हैं। पुलिस ने ऐसी एक्टिविटी पर फोकस किया है। इस वजह से लगातार खाईवाल पकड़े जा रहे हैं। पकड़े गए बुकी और खाईवाल कोई न कोई व्यवसाय से जुड़े हैं। आरोपियों से 55 हजार कैश के साथ कम्युनिकेटर मशीन, लैपटॉप, मोबाइल, पेनड्राइव जब्त किया गया है।
पुराना बुकी, पुलिस में रिकार्ड : पुलिस के अनुसार उमेश राजवानी इसके पहले भी क्रिकेट सट्टे में पकड़ा जा चुका है। उनका कनेक्शन मुंबई और नागपुर के बड़े बुकी से है। उनसे लाइन खरीदकर वे यहां के खाईवाल को देते हैं। पुलिस के अनुसार रैकेट में शामिल अमित छाबडा और दिलीप चावला व सौरभ कुमार अभी फरार हैं। पूरे रैकेट में उनकी सबसे अहम भूमिका बतायी जा रही है। पकड़ा गया अविनाश दौलतानी शैलेंद्र नगर, विजय परप्यानी कटोरातालाब, नवीन चावला तेलीबांधा और निखिल गोविंदानी श्याम नगर का रहने है। आरोपियों से पूछताछ में ही अश्वनी माखीजा और उमेश राजवानी से लाइन लेकर सट्टा खिलाने की जानकारी दी। पुलिस ने बताया कि आरोपी कभी खुद के खाते में पैसों का ट्रांजेक्शन नहीं करते थे। इससे उन्हें फंसने का डर था। इसलिए वे वे हारने वाले को जीतने वाले व्यक्ति का खाता नंबर देते थे।
उसमें पैसों का ट्रांजेक्शन करते थे। फिर जीते हुए व्यक्ति को उसका पैसा काटकर बाकी कैश को मंगाया जाता है। आरोपी हर बातचीत को रिकॉर्ड करते हैं। उसका मोबाइल नंबर के आधार पर लैपटॉप पर में रिकॉर्ड तैयार किया जाता। मैच खत्म होने के बाद पूरे रिकॉर्ड को पेनड्राइव में लेकर लैपटाप से हटा दिया जाता था। आरोपी रोज इसी तरह से काम करते थे। पुलिस ने उनके पास से पेनड्राइव जब्त किया गया है। उसमें 200 मोबाइल नंबर के सामने हिसाब-किताब लिखा हुआ हैं।
दूसरे के नाम से खरीद रखा है सिम
आरोपियों के पास से कम्युनिकेटर मशीन मिली है, जिसमें 17 सिम लगते हैं। मशीन में एक रिकॉर्ड भी है, जिसमें 17 नंबरों से बातचीत रिकॉर्ड होती है। आरोपियों ने अधिकांश नंबर दूसरों के नाम से लिया हुआ है। इन्हीं नंबरों का उपयोग सट्टा के लिए करते है। सट्टा लगाने वालों को आरोपी कभी अपना व्यक्तिगत नंबर नहीं देते है। इन्हीं 17 नंबरों को देते हैं।
200 सटोरियों का बनाया ग्रुप केवल पहचान वालों के दाव
आरोपियों ने 200 सटोरियों का सोशल मीडिया में ग्रुप बनाया है। उन्होंने ग्रुप में केवल अपने जान पहचान या पुराने ग्राहकों को ही शामिल किया है। वे केवल उन्हीं से दांव ले रहे थे। सोशल मीडिया के ग्रुप में भाव और दांव दोनों अपडेट किया जा रहा था। एक-एक बाॅल में कितने रन बनेंगे और एक ओवर के बाद कितना स्कोर होगा इस पर भी दांव लिया जा रहा था। खिलाड़ियों के रनों व बॉलरों के विकेट व रनों पर भी दांव लिया जा रहा था।
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