
छत्तीसगढ़ सरकार केन्द्रीय कृषि बिल और श्रम कानून को राज्य में लागू होने से रोकने के लिए अपना नया कानून बनाएगी। वहीं शीतकालीन सत्र के पहले यदि केन्द्रीय कानून लागू करने का दबाव आया तो राज्य सरकार विधानसभा का विशेष सत्र भी बुला सकती है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में कृषि बिल का विभिन्न विभागों में होने वाले असर को लेकर चर्चा हुई। सभी विभागों को इस बिल से हाेने वाले दुष्परिणाम को रोकने के लिए नियम और कानून के तहत ड्राफ्ट तैयार करने के लिए कहा गया है। सरकार के प्रवक्ता और कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने बताया कि इस बिल के लागू होने प्रदेश में धान खरीदी की व्यवस्था चौपट हो जाएगी। वहीं राज्य का कोऑपरेटिव स्ट्रक्चर भी ध्वस्त हो जाएगा। उन्होंने बताया कि इस बिल को काउंटर करने के लिए असेंबली या स्टेट में किस तरह से कानून ला सकते हैं, कानून में क्या-क्या प्रावधान किए जाएंगे तथा इसे कैसे प्रस्तुत किया जाएगा इस संबंध में विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने बताया कि यह बिल पूरी तरह से गरीब औैर किसान विरोधी है। उन्होंने कहा कि इससे गरीबों को चावल देने की योजना पर भी असर पड़ेगा। इसलिए सरकार विधि सम्मत संविधान के अनुच्छेद के तहत राज्य के अधिकारों का उपयोग कर कानून बनाने के लिए पूरी तैयारी कर रही है।
उन्होंने बताया कि यदि यह लागू हुआ भी तो निजी मंडी बनाने के लिए जमीन तो राज्य सरकार ही देगी, इसका लेआउट- डायवर्सन का अधिकार तो राज्य सरकार के पास होगा। इसलिए कई चीजें तो अभी सरकार के नियंत्रण में ही रहेगी।
गरीबों को पांच से सात सौ रुपए का घाटा
शांताकुमार कमेटी की रिपोर्ट में गरीबों को चावल नहीं देने की बात कही गई है बल्कि उसके बदले उसे पांच से छह सौ रुपए देने कहा जा रहा है। अभी हम गरीबाें को 35 किलो चावल देते हैं जो कि 11 सौ रुपए का होगा। यानि इसमें भी गरीबों को छह से सात सौ रुपए का घाटा होगा।
मरकाम ने बताई पार्टी के आंदोलन की रुपरेखा
पीसीसी चीफ मोहन मरकाम ने बिल के विरोध में पार्टी द्वारा बनाई गई आंदोलन की रुपरेखा की जानकारी दी गई। उन्होंने राज्यपाल को दिए गए ज्ञापन तथा 2 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक हस्ताक्षर अभियान और 14 तारीख को किसान सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा।
जमाखोरी के कारण धान खरीदी प्रभावित होगी
चौबे ने कहा कि व्यापारियों को जमाखोरी की लिमिट बढ़ा दी है। इससे दूसरे प्रदेशों से व्यापारी धान लेकर यहां बेचने आएंगे इससे हमारी व्यवस्था ठप हो जाएगा। जमाखोरी करेंगे तो बाजार उनके नियंत्रण में हो जाएगा। इससे महंगाई बढ़ेगी। किसानों को कीमत नहीं मिलेगी
किसानों को सब्सिडी भी नहीं दे पाएंगे
चौबे ने बताया कि यदि कांट्रेक्ट फार्मिंग बिल लागू होता है तो अभी हम किसानों को जो खाद, बीज पर सब्सिडी देते हैं, कृषि के शून्य प्रतिशत पर लोन देते हैं वह सब खत्म हो जाएगा। किसान निजी व्यापारियों से अनुबंध करेगा तो हम निजी लोगों को सब्सिडी थोड़े ही देंगे। इससे हमारी प्राथमिक सोसायटी और कोआपरेटिव बैंक भी खत्म हो जाएगी। जिन बैंकों पर अभी किसानों का अधिकार है वह भी पूंजीपतियों के हाथों में चला जाएगा।
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