
पापा ऑटो चलाकर घर का गुजर-बसर करते। किसी तरह मुझे पढ़ाया। 12वीं के बाद जॉब करना था। आर्मी में जाने का मन बनाया। रनिंग के लिए जूते तक नहीं थे। मोजे पहनकर ग्राउंड में रोज दौड़ लगाता। दोस्त मोजे कहकर मजाक बनाते, लेकिन हार नहीं मानी। पंफलेट की रफ कॉपी बनाकर पढ़ाई की। कांकेर में आर्मी का भर्ती कैंप लगा। ज्वाइनिंग हो गई। सिपाही के बाद इंडियन मिलिट्री का एग्जाम फाइट कर लेफ्टिनेंट बना। राजपूत रेजिमेंट के इतिहास का पहला सिपाही हूं जो सीधे सैन्य अफसर बना।

ये कहानी है, छत्तीसगढ़ के भिलाई खुर्सीपार जोन-2 के रहने वाले अभिषेक सिंह की। अभिषेक के पिता उमेश सिंह ऑटो चालक है। जिसने अपने बेटे को पढ़ा लिखाकर आज सेना में काबिल अफसर के लिए तैयार किया। 12 दिसंबर 2020 को ही अभिषेक ने अपनी चार साल की कड़ी ट्रेनिंग पूरी की। पासिंग आउट परेड में शामिल होने के बाद उन्हें पठानकोट में पहली पोस्टिंग मिली है। जनवरी के पहले सप्ताह में ज्वाइनिंग देने पठानकोट जाएंगे। इससे पहले उन्होंने DB App से अपनी कहानी शेयर की।
दो साल तैयारी की, लेकिन पहले ही इंटरव्यू में फेल हो गया
अभिषेक बताते हैं, घर की स्थिति ठीक नहीं थी, तो पहले यही सोचता था कि कोई सरकारी नौकरी मिल जाए। राजस्थान के गंगानगर में पोस्टिंग के दौरान मैंने पहली बार सैन्य अफसर विजय पांडेय को देखा। उनसे ही अफसर बनने के लिए जानकारी ली। साल 2013 से लेकर 2015 तक पूरी मेहनत-लगन के साथ तैयारी की। ड्यूटी के साथ-साथ एग्जाम की तैयारी काफी टफ था। 2015 के रिटर्न एग्जाम में सलेक्शन हो गया, लेकिन पहले ही इंटरव्यू में मैं फेल हो गया। फिर भी हार नहीं मानी।

बाइबिल में लिखी एक लाइन ने हार को जीत में बदल दिया
लेफ्टिनेंट अभिषेक बताते हैं कि इंटरव्यू में फेल हुआ तो टूट सा गया। फिर उन्होंने बाइबिल पढ़ना शुरू किया। जिसमें लिखे एक वचन-'मैं तुझे पूछ नहीं, सिर पर ठहराऊंगा। तुम नीचे नहीं, हमेशा ऊपर ही रहोगे' ने हार को जीत में बदल दिया। दूसरी बार फिर दोगुनी मेहनत से एग्जाम की तैयारी की। साल 2016 में एग्जाम के लिए बंगलुरू जाने से पहले सर्जिकल स्ट्राइक हुआ। तब जम्मू-कश्मीर में पोस्टिंग थी। छुट्टी नहीं मिल रही थी, लेकिन रेजिमेंट के अफसरों ने साथ दिया और इंडियन मिलिट्री एकेडमी में सेलेक्ट हो गया।
मां का फर्ज पिता ने निभाया, सपना किया पूरा, पत्नी ने साथ दिया
अभिषेक बताते हैं कि जब मैं पांच साल का था, तभी मां का निधन हो गया। मां कहती थी कि बेटा बड़ा अफसर बनेगा। उनके सपने को पूरा करने के लिए पिता उमेश सिंह ने जीतोड़ मेहनत की। आज उनकी कही बात सच हो गई। पिता ने ही माता-पिता दोनों का फर्ज निभाया। एक पिता के परिश्रम ने बेटे को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। वह अपनी सफलता के पीछे पत्नी मनीषा का बड़ा हाथ मानते हैं। बताते हैं कि मनीषा गर्भवती थी, तब वे ट्रेनिंग कर रहे थे। बेटी के जन्म से लेकर ट्रेनिंग पूरी होने तक मनीषा ने पूरे परिवार की देखभाल की।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3mFdxeS
0 komentar