
रायपुर के औद्योगिक क्षेत्र सिलतरा स्थित ग्रीन पेट्रो नाम की कंपनी में के प्लांट में लगी आग पर काबू पा लिया गया है। ऐसा करने में सात घंटे से अधिक का वक्त लगा। आग बुझाने की कोशिश में तीन दमकलकर्मी भी मामूली रूप से झुलसे हैं। इतने बड़े हादसे में भी किसी जनहानि की खबर नहीं है।
ग्रीन पेट्रो के संचालक मोनीश जाैहरी ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा, अभी तक उन्हें समझ में नहीं आया है कि हादसा कैसे हुआ। जैसे ही आग पकड़ने की सूचना मिली, हमारी पहली प्राथमिकता कर्मचारियों को वहां से बाहर निकालने की थी। उसके बाद हमारे फायर फाइटर्स ने काम शुरू किया। लेकिन आग भड़कती चली गई।
मोनीष जौहरी ने कहा, अभी तक नुकसान का आकलन नहीं हो पाया है। आग बुझ चुकी है, लेकिन प्लांट परिसर का बड़ा हिस्सा काफी गर्म है। ऐसे में किसी को वहां जाना रोका गया है। ठंढा होने के बाद वहां जाकर देखा जाएगा कि क्या-क्या नुकसान हुआ। उसके बाद की नुकसान का पता चलेगा।
इधर पुलिस अफसरों का कहना है, उनकी पहली प्राथमिकता हादसे पर काबू पाना और आग को परिसर से बाहर जाने से रोकना था। अब इस बात की जांच की जाएगी, कि हादसा कैसे हुआ। अगर प्लांट की गलती निकली अथवा सुरक्षा मानकों की अनदेखी सामने आई तो कार्रवाई हो सकती है।
ऐसे भड़कती चली गई आग
स्थानीय पुलिस ने बताया, सिलतरा में ग्रीन पेट्रो का प्लांट है। यहां रिफाइंड पेट्रोलियम बनाने का काम होता है। शाम को यहां एक टैंकर खाली हुआ। वह ऑयल टैंक के पास ही खड़ा था, तभी उसमें आग लग गई। जब तक कर्मचारी उसपर काबू पाने की कोशिश करते, आग ऑयल टैंकर तक पहुंच गई। ऑयल टैंक में आग लगने के बाद कर्मचारी वहां से जान बचाकर भागे।
थोड़ी ही देर में टैंक में एक के बाद एक कई ब्लास्ट हुए और आग पूरे परिसर में फैल गई। सूचना के बाद रायपुर से फायर ब्रिगेड और पुलिस की दर्जनों टीमों का रवाना किया गया। आग पर नियंत्रण नहीं होता देख प्रशासन ने भिलाई स्टील प्लांट से भी फायर ब्रिगेड की गाड़ियां बुला ली। रात एक बजे के आसपास आग पर काबू पा लिया गया था।
गांव को खाली करा लिया था
परिसर में भड़की आग को दूसरे इलाकों में बढ़ने से रोकने के लिए फायर ब्रिगेड ने आग पकड़ सकने वाले झाड-झंखाड़ तक पर पानी डाला था। वहीं आसपास के गांवों और कारखानों को अलर्ट पर रखा गया। प्लांंट के पास स्थित टाड़ा गांव की सरपंच ने गांव के दो वार्डों को रात में ही खाली करा लिया। सभी लोगों को सामुदायिक भवनों में जाने को कह दिया गया, ताकि गांव तक आग पहुंचने से किसी जान का नुकसान न हो।
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